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ठगिनी और व्यापारी भाग-10

                 भाग- 10 अंतिम

यशवर्धन रस्सी की तलाश में उस कमरे से बाहर आ जाता है. इधर अनंतप्रिया की नींद खुल जाती है. यशवर्धन को रस्सी तो मिल जाती है लेकिन इतने में अनंतप्रिया अपने कक्ष से बाहर आ जाती है. उसे यशवर्धन के कदमो की आवाज सुनाई देती है इस कारण वह उस आवाज की दिशा में आगे बढती है. यशवर्धन के हृदय की धडकने तेज हो जाती हैं. वह एक अँधेरे कोने में छिप जाता है. अनंतप्रिया आवाज लगाती है- कौन है वहां?
यशवर्धन डर के मारे उस कोने के आगे तक छिप जाता है. अनंतप्रिया उसकी तरफ आगे बढ़ रही है. अनंतप्रिया को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. इधर यशवर्धन ने हिम्मत जुटाई और अपने हाथ में ली गई उस बेहोश कर देने वाली दवा की डिबिया को खोला और अचानक अनंतप्रिया का मुहं दबोच लिया इस कारण वह होहल्ला नहीं कर पाई और फिर उसने उस डिबिया को उसके नाक के पास लगा दिया. शीघ्र ही वह बेहोश हो गई. यशवर्धन ने अपनी हिम्मत से अनंतप्रिया को भी बेहोश कर दिया. फिर उसने उस रस्सी को उठाया. उस कक्ष में गया. उसने चारपाई के एक पाईदान से उस रस्सी को बाँधा. अपना सामान पीछे लटकाया और खिड़की के अन्दर से होते हुए नीचे की तरफ जाने से पूर्व उसने रूपवती के तरफ मुस्कुराते हुए कहा- अलविदा! ठगिनी. मजा आया तुम्हे हराने में.
फिर वह उसी पल उनके  अस्तबल में गया. उसने एक पतले से घोड़े को खोला और उस पर चढ़ गया. शीघ्र ही वह उज्जैन नगरी में पहुँच गया. इधर ठग और उसके परिवार को पता चला की वह लड़का भाग गया है तो उन्हें अपनी मुर्खता पर गुस्सा आया. खाश तौर से रूपवती को । जिसे अपने रूप और बुद्धिमानी पर  घमंड था  वो चकनाचूर हो गया. एक  व्यापारी के पुत्र ने उसके सारे मंसूबो पर पानी फिर दिया और यह सब हुआ उस ब्राह्मण पुत्र श्रीदत के उन चार कथनों की वजह से. यशवर्धन को आभाष हो गया था की नि:संदेह उसके दोस्त के चारों कथन उसके सोने के सिक्को से भी महंगे थे. यशवर्धन ने उज्जैन में अपना व्यापार स्थापित कर लिया. उसने वहीँ पर एक व्यापारी पुत्री के साथ शादी भी कर ली. दो वर्ष के अंतराल के बाद यशवर्धन अपने माता-पिता से मिलने अपने नगर सृष्टिपुर  अपनी  पत्नी के साथ आया. उसके माता-पिता को उसकी बहादुरी और उसकी बुद्दिमानी पर गर्व हुआ. उनका व्यापार पुनः पटरी पर लौट आया। यशवर्धन ने साबित कर दिया की अगर धैर्य से काम लिया जाए तो मुश्किल से भी मुश्किल शत्रु को पराजित किया जा सकता है।
  
  समाप्त ☺️

प्रिय पाठकों,
                 मैंने अपने वादे के मुताबिक इस कहानी का अंत अपने अनुसार किया है। इस कहानी को लिखने के दौरान कम से 5 पाठक ऐसे थे जो हर रोज मुझे कहते थे की मैं कहानी की कॉपी कर रहा हूँ लेकिन मुझे पता था कि मेरी कहानी अलग होगी। इस लिए जिन पाठको ने मुझे एक स्टार देकर कॉपी वाली संमीक्षा की है मेरा उन सब से अनुरोध है कि कृपया करके उन समीक्षाओं को हटा ले क्योंकि मैं अपने माप- दंड पर खरा उतरा हूँ। मैंने इस कहानी के शुरू में ही बोल दिया था कि हो सकता है कि यह कहानी आपको किसी लोककथा से मिलती जुलती लगे। क्योंकि इसका कथानक मैंने मेरे दादाजी के द्वारा सुनाई गई एक कहानी से लिया है लेकिन उस कहानी से मैंने सिर्फ वो चार कथन और कछुए वाला भाग लिया है। लेकिन उस कहानी में भी वो कछुआ बोलता नहीं है। खैर जो भी आपकी ठगिनी और व्यापारी की कहानी पूर्ण हुई।

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7 Comments

Dilawar Singh

16-Feb-2024 11:23 AM

अद्भुत कहानी👌 अति सुन्दर सृजन 👌👌

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रतन कुमार

26-Nov-2021 05:54 PM

बहुत ही अच्छी कहानी बुनी है अपने एक दम ज़िन्दगी के करीब अगली कहानी का आप का बेसब्री से इंतजार रहेगा जल्द ही दयसरी कहानी ले कर आप आए

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Fiza Tanvi

20-Nov-2021 01:10 PM

Good

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